पश्चिमोत्तानासन की विधि,लाभ,सावधानियाँ और नुकसान,paschimottanasana ki vidhi,fayde,savdhaniyan,aur nuksan

पश्चिमोत्तानासन की विधि,लाभ,सावधानियाँ और नुकसान(Paschimottanasana method, benefits, precautions and disadvantages)


   Written byDr.Virendra Singh  Edited byPratibha Thakur


पश्चिमोत्तानासन(Paschimottanasana/Forward Bend pose)

पश्चिमोत्तानासन दो शब्द से मिल कर बना है,पश्चिम और उत्तान।पश्चिम का अर्थ है पश्चिम दिशा या शरीर का पिछला हिस्सा और उत्तान का अर्थ है खिचाव(stretch), अर्थात् शरीर के पिछले हिस्से में खिचाव पश्चिमोत्तानासन(back stretching pose)कहलाता है।


पश्चिमोत्तानासन 
करने से पूर्व आसन अभ्यास(Asana practice before doing Paschimottanasana)

इस आसन को करने से पहले कुछ आसन और स्ट्रेचिंग करना उचित होगा।जिससे आपको इस आसन के अभ्यास में मदद मिलेगी।

  • तितली आसन(Butterfly Pose)
  • बालासन(child’sPose)
  • दंडासन(Staff Pose)
  • वीरभद्रासन(Warrior Pose)

ये सभी आसनों का पूर्व अभ्यास शरीर को पश्चिमोत्तानासन  करने में सहायक साबित होंगे।


पश्चिमोत्तानासन की विधि(Method of Paschimottanasana)



पश्चिमोत्तानासन करने से पहले उसकी सही विधि को जानना जरुरी है क्योंकि यदि हम सही तरीके से आसन का अभ्यास नहीं कर रहे है तो लाभ के स्थान पर नुकसान भी हो सकता है।इसको करने का सही तकनीक इस प्रकार है

  • सबसे पहले मैट के ऊपर पैरों को फैलाकर सामने की तरफ बैठ जाये, पैरों को एक साथ रखें और दोनों हाथों को दोनों घुटनों पर रखें। 
  • मेरुदण्ड का भाग एक सीध में होगा पूरे शरीर को कुछ समय के लिए स्थिर रखने की कोशिश करें। 
  • अब अपने दोनों हाथों को अपने सिर के ऊपर(आकाश) की तरफ खींचें निचली स्पाइन(Lower back) से हाथों तक का भाग एक सीध में ऊपर की तरफ खिचा हुआ हो।कुछ समय इस स्थिति में रोक कर रखें।
  • इसके बाद श्वास छोड़ते हुए अपने सिर और कमर को निचले भाग से आगे की ओर धीरे-धीरे झुकाने का प्रयास करें,जितना सम्भव हो,दोनों हाथों से अपने दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ने की कोशिश करें,यदि प्रारंभिक अभ्यास में मुश्किल हो तो एड़ी,टखने,पिंडली,घुटना या पैरों के किसी भी हिस्से को पकड़ने की यथासंभव कोशिश करें, जहां तक आराम से पहुँचा जा सकता है। बिना जोर लगाए या झटके के अभ्यास में आगे बढ़ें।
  • अपने सिर और माथे से आगे दोनों घुटनों को छूनें का प्रयास करें।
  • यह ध्यान रखें की मेरुदंड को निचले हिस्से से आगे खिंचने का प्रयास करें कहीं बीच में स्पाइन नहीं मुड़ना चाहिए और आपके दोनों पैर के घुटने सीधे ज़मीन पर स्पर्श करते रहें।
  • अब अपनी दोनों हाथों की कोहनीं(elbow)को मोड़कर नीचे जमीन को स्पर्श कराने की कोशिश करें,यदि संभव नहीं है तो सीधा भी रखा जा सकता है,कुछ सेकंड के लिए इसी स्थिति में बने रहें।यह हमारी आसन की पूर्ण स्थिति कहलायेगी।
  • इसके बाद जितनी देर आपके लिये आरामदायक स्थिति है रुकने का प्रयास करें फिर धीरे-धीरे अपनी प्रारंभिक स्थिति में लौट आएं और कुछ समय के लिये आराम करें।यह हमारा एक चक्र संपन्न हुआ।
  • श्वास को सामान्य करने के बाद इसको दो या तीन बार अपनी क्षमतानुसार किया जा सकता है।


श्वास की स्थिति(Breathing)

हाथों को सिर के ऊपर ले जाते हुए श्वास भरें। झुकने से पहले पूरी तरह श्वास छोड़ दे।आगे झुकते समय श्वास को बाहर रोककर रखें और बिना श्वास के अंतिम स्थिति में रहें। सीधी स्थिति में लौटते समय श्वास लें।हाथों को नीचे लाते हुए श्वास छोड़ें।


बेगिनर्स के लिए(paschimottanasana for Beginners)



प्रारंभिक अभ्यास के दौरान कोई भी आसन जल्दबाजी में ना करें,और यदि हमारा सिर घुटनों में नहीं स्पर्श कर पा रहा है तो जबरजस्ती मत करें जितना संभव है धीरे धीरे अभ्यास में आगे बड़ते जायें क्योंकि ज्यादा खिंचाव देने से पैर,नितम्ब,साइटिका नर्व और पीठ पर खिचाव सकता है।यदि आपके हाथ पैर को छू पा रहें हो तो कोई बात नहीं जितना आपके लिये सम्भव हो उतना करें।इस आसन का अभ्यास कुछ समय नियमित करते रहने से लचीला पन बढ़ेगा और लाभ मिलेगाइस आसन का निरन्तर अभ्यास करने से हमारे पैर और कमर की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीली होंगी जिससे आप कुछ समय बाद आसन की पूर्णतः तक जाने में समर्थ होंगे।प्रारंभिक चरण में आप के हाथ जहां तक पहुँच रहे है वहीं रोकने की कोशिश करें।इस अभ्यास को धीरे धीरे बढ़ाते जायें।


 पश्चिमोत्तानासन का समय(Duration)

प्रारंभिक समय में अभ्यासी व्यक्ति को केवल थोड़े समय के लिए अंतिम स्थिति में रहकर दो से लेकर तीन राउंड तक का अभ्यास ही करना चाहिए इसके बाद जैसे जैसे अभ्यास बढ़ता जाये चक्र और समय बढ़ाया जा सकता है।

विशेषज्ञ दो से तीन मिनट तक अंतिम स्थिति बनाए रख सकते हैं।


सजगता(awareness)

शारीरिक - इस आसन में सजगता पेट पर, पीठ की मांसपेशियों का शिथिल होने में या धीमी गति से श्वास लेने की प्रक्रिया में।

आध्यात्मिक- इसमें स्वाधिष्ठान चक्र पर सजगता।


पश्चिमोत्तानासन के बाद आसन अभ्यास(Asana practice after Paschimottanasana)

इस आसन के अभ्यास के बाद आप अपने कमर और पैर की माशपेशियों को आराम देने के लिये  पीछे झुकने(back bending)वाले आसन कर सकते है

  • पूर्वोत्तानासन(Purvottanasana)
  • सेतुआसन(Setu asana)
  • चक्रासन(Chakrasana)
  • भुजंगासन(Bhujangasan)                                   

  इन बैक बैंडिंग(back bending)आसनों का अभ्यास किया जा सकता है जिससे शरीर में किसी भी प्रकार से चोट(Injury)की संभावना खत्म और साथ साथ आसन के अभ्यास में सरलता हो जाती है।


पश्चिमोत्तानासन के लाभ(Paschimottana benifits)

इस आसन के अभ्यास से अनेक शारीरिक और मानसिक लाभ प्राप्त होते है यह शरीर के सभी अंगों में प्रभाव डालता हे इस कारण शरीर के सभी अंगों में इसके प्रभाव देखे गये है।जो इस प्रकार है


कमर को मजबूत बनाने में(To strengthen the waist)

पश्चिमोत्तानासन करने से हमारे कमर की मांसपेशियों में और पैर की मांसपेशियों में खिचाव और लचीलापन आता है जिससे कमर मजबूत होने के साथ साथ फ्लेक्सिबिलिटी भी बढ़ाने में मदद मिलती है।


तनाव और चिंता दूर करने में(relieving stress and anxiety)

पश्चिमोत्तानासन का ठीक से अभ्यास करने पर हमारे सिर,गर्दन और मस्तिष्क की मांसपेशियों में खिचाव महसूस होता है जो तनाव,चिंता,क्रोध,चिड़चिड़ापन और मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं को दूर करके मन को शांत करने में मदद करता है।इसीकारण इसे शारीरिक स्वस्थ के साथ साथ मानसिक स्वस्थ में भी लाभदायक माना गया है।


पेट की चर्बी में(in belly fat)

इस आसन के अभ्यास से पेट की मांसपेशियों में खिचाव महसूस होता है जिससे यह आसन पेट का फैट कम करने में सहायक माना गया है।


शांति और मानसिक स्थिरता में(in peace and mental stability)

पश्चिमोत्तानासन के अभ्यास से हमारी गर्दन और मस्तिस्क की मासपेसियों में खिचाव महसूस होता है जो हमारी मस्तिष्क की नर्व को सक्रिय करने के साथ साथ विश्राम की अवस्था में ले जाने का कार्य करता है इससे हमारा मन शांत होता है और मानसिक स्थिरता प्राप्त करने में सहायता मिलती है।


रीढ़ की हड्डी में(in the spinal cord)

इस आसन के अभ्यास से रीढ़ की हड्डियों और मांसपेशियों के नसों में रक्त का संचार होता है।जिससे नर्व में मजबूती और लचीला पन बढ़ता है।रीढ़ की हड्डी में नसें होती हैं जो मस्तिष्क और शरीर के अन्य भागों से जोड़ने का कार्य करती है,मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को मिला कर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र बनता है।मस्तिष्क का कार्य है संदेशों को बना कर रीढ़ की हड्डी के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचना और इसी मार्ग से संदेशों को समझ कर उसका तत्काल प्रतिक्रिया देना।इस आसन के अभ्यास से हमारी केंद्रीय तंत्रिका तंत्र,मस्तिष्क और शरीर के मध्य संतुलन और नियंत्रण बना रहता है।रीढ़ की हड्डी में हमारे सात चक्र ऊर्जा रूप में उपस्थित होते है जिससे इस आसन के द्वारा शारीरिक लाभ के साथ साथ आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है जो हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी होगा।


पाचन तंत्र को सुधारने में(improving the digestive system)

हमारे शरीर में सबसे ज्यादा रोगों की समस्या पाचन तंत्र गड़बड़ होने के कारण होती है,ज्यादा तर बीमारियाँ पाचन तंत्र की गड़बड़ी से उत्पन्न होती है और यदि हमारा पाचन क्रिया ठीक है और पेट ठीक से साफ रहता है तो शरीर की आधे से ज्यादा समस्या यहीं समाप्त हो जायेगी।इस आसन के अभ्यास से हमारी पेट की मसल्स कि क्रियाशीलता बड़ती है,पेट में रक्त का संचार ठीक तरीके से होता है जिससे हमारा पाचन तंत्र मजबूत होता है,ओर पाचन शक्ति बड़ती है,जिसकारण हमारे शरीर में जो अपच के कारण कब्ज और खट्टी डकारों की समस्या उत्पन्न हो जाती है वो भी ठीक होने में सहायता मिलती है और साथ साथ पाचन तंत्र मजबूत होने से बहुत सारी व्याधियों से मुक्त रहेंगे और हमारे शरीर का मेटाबोलिज्म बेहतर बनाने में मददगार साबित होगा।


कमर को मजबूत बनाने में(Waist strong)

यह आसन हैमस्ट्रिंग की मांसपेशियों को खींचता है और कूल्हे के जोड़ों में लचीलापन बढ़ाता है साथ साथ कमर को लचीला बनाता है जिससे उसमे मजबूती आती है और रक्त का संचार ठीक तरीके से हो पाता है।यदि हमारी कमर मजबूत है तो हम स्लिप डिस्क,कमर दर्द,सर्वाइकल स्पांडलाइटिस,साइएटिका अनेक प्रकार की समस्यायों से बच सकते है और अपने आप को स्वस्थ बनाये रख सकते है।


थकान को कम करने में(to reduce fatigue)

इस आसन के अभ्यास से हमारे शरीर की मसल्स,नर्व तो कार्य करते ही है साथ ही हमारे मस्तिष्क की मांसपेशियों में  प्रभाव पड़ता है जिससे हमारे मस्तिष्क की मासपेसियाँ(नर्व)विश्राम और शिथिल होती है उनमें जो तनाव,खिचाव और थकान थी वो दूर हो जाती है।यह हमारे शरीर के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य में भी उपयोगी साबित हुआ है।


अनिद्रा के लिए(insomnia)

इस आसन का अभ्यास करने से हमारे शरीर और मस्तिष्क की नसों में रक्त का संचार ठीक तरीके से होता है,शरीर और मस्तिष्क की मसल्स रिलैक्स होतीं है जिससे हमारे अन्दर जो थकान है वो दूर होंगी।मन में सकारात्मक विचार आयेंगे और मन शांत होगा,श्वाँसो में नियंत्रण होगा,शरीर में स्थिरता आयेगी जिससे हमारे अन्दर विचार कम आयेंगे और मन स्थिर होने से अनिद्रा की समस्या धीरे धीरे दूर हो जाती है।


रक्तचाप को नियंत्रण करने में(blood pressure control)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से हमें रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। इसके अभ्यास करने से हमारे शरीर में रक्त का संचार ठीक से होता है,नसों में कोलेस्ट्रॉल का जमाव नहीं हो पाता जिससे रक्त संचरण में हृदय पर दबाव कम पड़ता है और ब्लड में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होने से आसानी से पूरे शरीर में रक्त का संचार होने लगता है।इस आसन को श्वास के साथ किया जाता है जिससे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है और शरीर के विषाक्त तत्व श्वास के माध्यम से बाहर निकल जाते है,मन शांत हो जाता है,विचार स्थिर हो जाते है,तनाव,चिंता,द्वेष,विषाद,क्रोध,लोभ,ईर्षा कम हो जाते है।हमारी मस्तिष्क की नसें रिलैक्स हो जाती है।पूरे शरीर में और मस्तिष्क में ठीक से रक्त का संचार होने लगता है इसीलिए इस आसन को उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप दोनों के नियंत्रण में फायदेमंद माना गया है।


बढ़ती हुई लंबाई में(Hight gain)

 पश्चिमोत्तानासन के अभ्यास से हैमस्ट्रिंग(hamstring) मसल्स, कूल्हों की,पैर की,हाथों की,कमर की,गर्दन की,कंधों की और मेरुदंड की मासपेसियाँ खिचती और लचीली होती है ,यह आसन हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है जिससे शरीर का उचित विकास होता है और मेरुदंड में लचीला पन बढ़ने से लंबाई बढ़ने में मदद मिलती है।


मांसपेशियों के लिए उपयोगी(useful for muscles)

पश्चिमोत्तानासन के नियमित अभ्यास से हमारे संपूर्ण शरीर में रक्त का संचार ठीक तरीके से होता है,रक्त के माध्यम से संपूर्ण शरीर को पोषण मिलता हे। जब हम इस आसन का अभ्यास करते है,उस समय हमारी पैर,नितंब,पेट,मेरुदंड,सर्वाइकल का क्षेत्र,हाथ और मस्तिष्क की मांसपेशियों में खिचाव महसूस होता है, जिससे इनमें लचीला पन होने के साथ साथ रक्त का संचार ठीक से होता हे जिससे इसकी मजबूती बड़ती है और इसमें किसी प्रकार की समस्या नहीं आती,यदि हमारा अभ्यास सही तरीके से चल रहा है तो हमें मासपेशियों को स्वस्थ और मजबूत बनाये रखने में मदद मिलेगी।


शरीर को लचीला बनाने में(flexibility)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से हमारी मांसपेशियाँ,हड्डियाँ(bones) और स्नायुबंधन(ligaments) में खिचाव आने के साथ साथ रक्त ठीक तरीके से शरीर में पहुचता है जिससे शरीर की मजबूती बढ़ने के साथ साथ शरीर को लचीला बनाने में मदद मिलती है।


तनाव और चिंता दूर करने में(stress and anxiety)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से हमारे अन्दर तनाव और चिन्ता पैदा करने वाले विचार और रसायन दूर करने में सहायता करता है जिससे

हमारी शरीर की मांसपेशियों के साथ साथ मस्तिष्क की मासपेसियाँ रिलैक्स(विश्राम) और शांत होने में मदद मिलती है,जब हम इस आसन का निरन्तर अभ्यास करते रहते है तब हमारे अन्दर तनाव और चिन्ता को दूर करने में सहायता मिलती है।


पेट की समस्याओं के लिये(stomach problem)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से पेट में गैस की समस्या,कब्ज की समस्या,एसिडिटी,पेट का फेट,बड़ी आँत,छोटी आँत,पेट में कीड़े,मधुमेह,नाभि टलने में,गुर्दे और अपच जैसी अनेक समस्याओं से छुटकारा दिलानें में सहायता मिलती है।


चेहरे में ग्लो के लिए(face glow)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से हमारी चेहरे की मांसपेशियों में खिचाव के साथ साथ लचीला पन आता है इसकारण रक्त का संचार ठीक तरीके से पूरे चेहरे पर होता है जिससे हमारे चेहरे की स्वस्थ त्वचा का निर्माण होता है,त्वचा चमकदार होती है,चेहरे की झुर्रियाँ ठीक होती है और चेहरे में ग्लो(glow)लाने में मददगार साबित होता है।

जोड़ों के दर्द में(joints pain)

इस आसन के अभ्यास से हमारे जोड़ों(joints)में रक्त का संचार होता है जिससे फ्लेक्सिबिलिटी बड़ती है।एक्सरसाइज की कमी से हमारे शरीर में जकड़न और जोड़ों में अकड़न  बढ़ जाती है,वात रोग बढ़ने लगता है,शरीर में वायु की उपस्थिति बढ़ने लगती है,शरीर के जोड़ों में स्टिफ़िनिस(अकड़न) के कारण वायु भर जाती है जो जोड़ों में दर्द का कारण बनती है और जब इसकी अधिकता हो जाती है तब यह गठिया(आर्थराइटिस) के रूप में उभर कर जाता है,यह आसन हमें इस समस्या से बचने में सहायता करता है और साथ ही हमें जोड़ों के दर्द में राहत दिलाने में मदद करता है। जो व्यक्ति इन आसनों का अभ्यास करता रहता है अक्सर उनमें जोड़ के दर्द देखने को नहीं मिलता और यदि किसी कारण वस हो भी जाता है तो उनकी रिकवरी जल्दी हो जाती है जिससे उन्हें जोड़ों के दर्द में राहत मिलनें में मदद मिल जाती है।


मधुमेह में सहायक(diabetes)

पश्चिमोत्तानासन का नियमित रूप से अभ्यास करने से अग्न्याशय(pancreas) की क्रियाशीलता बड़ती है,जिससे इंसुलिन का स्राव ठीक तरीके से शरीर में होता है और साथ साथ हमारे अन्दर शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है।शरीर में शर्करा का स्तर अधिक होना चाहिए और ही कम होना चाहिए इसका स्तर संतुलित होना चाहिए तभी हम स्वस्थ माने जाएँगे।इसीलिए इस आसन को मधुमेह में बहुत ही प्रभावी माना गया है।


गर्भाशय संबंधी रोगों में(in uterine diseases)

पश्चिमोत्तानासन का नियमित अभ्यास महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य में उपयोगी माना गया है यह आसन गर्भाशय(Uterus)और डिंभ ग्रंथि(ovarian gland) की मांसपेशियों को फैलाने में मदद करता है साथ ही साथ मासिक चक्र के दौरान होने वाले दर्द को भी नियंत्रित करने में सहयोग प्रदान करता है इसके अलावा गर्भ धारण(baby conciev) के लिए सहायक माना गया है।


तिल्ली में उपयोगी(spleen)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से हमारे तिल्ली(spleen)की कार्यक्षमता बढ़ती है जिससे यह शरीर में अपना कार्य सुचारू रूप से करने में सहायक होती है और शरीर स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान देने में सफल होती है।


कृमि विकार में(worm)

पश्चिमोत्तानासन का नियमित अभ्यास पेट के कीड़े खत्म करने में भी उपयोगी माना गया है।


नाभि टलने में(Navel)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास हमारे पेट की मांसपेशियों को मजबूत करता है और उन्मे रक्त का संचार ठीक से करने में मदद करता है नाभि अक्सर हमारी कोर मसल्स या पेट की मासपेशियाँ कमजोर होने के कारण टलती है यह आसन हमारी इन मांसपेशियों को ठीक करने में सहायता करता है, जिससे नाभि टलने की समस्या दूर करने में उपयोगी माना गया है।


लीवर में(sluggish liver)

पश्चिमोत्तानासन का नियमित अभ्यास करने से हमारे लिवर की क्रियाशीलता बड़ती है,सुस्त लिवर ठीक से कार्य करता है,उसकी कार्य क्षमता बढ़ती है जो शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार साबित होगा।

लीवर का हमारे शरीर में बहुत ही उपयोगी योगदान माना गया है यह हमारे शरीर में पाचन तंत्र में कार्य करने के साथ साथ पित्त बनाने का भी कार्य करता है जो पाचन के लिए उपयोगी माना जाता है।यह वसा,प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का चयापचय करने का कार्य करते हुए विषाक्त तत्वों को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करता है, जिससे रक्त में रासायनिक संतुलन बना रहता है।यह शरीर को अनेक संक्रमण से बचाने में और शरीर को डीटॉक्स करने में सहायक माना गया है।


ग्रंथियों में(Glands)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से शरीर में उपस्थित ग्रंथियाँ भी सक्रिय होती है जिसमे एड्रेनल ग्लैड की कार्य क्षमता को बढ़ाने में मुख्य योगदान माना गया है यह शरीर में हार्मोन्स स्राव में मददगार मानी गई है,इससे पाचन शक्ति सुचारू रूप से कार्य करती है जिससे शरीर का ठीक से विकास होने में सहायता मिलती है और शरीर को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है।


मासिक धर्म में(in menstruation)

पश्चिमोत्तानासन का नियमित अभ्यास करने से महिलाओं में मासिक धर्म से संबंधित सभी प्रकार की समस्याओं में यह आसन उपयोगी माना गया है।

महिलाओं में मासिक धर्म आना ,मासिक धर्म के समय दर्द,अनियमित चक्र,अतिरक्त स्राव और यह रजोनिवृत्ति जैसी अनेक समस्याओं को ठीक करने में सहायक माना गया है।


कोलाइटिस में(Colitis)-

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से कोलाइटिस से संबंधित समस्यायों को ठीक करने में लाभकारी माना गया है।


ब्रोंकाइटिस में(Bronchitis)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से हमारे शरीर के अन्य अंगों में कार्य क्षमता बढ़ने के साथ साथ श्वास नली और फेफड़ों की कार्य क्षमता भी बढ़ती है।इस आसन का अभ्यास करते समय श्वास का विशेष ध्यान दिया जाता है जिससे ऑक्सीजन श्वास के माध्यम से हमारे फेफड़ों और डायफ्राम में पहुँचती है,जिससे हमारी श्वास नली,फेफड़ें,छाती की मांसपेशियाँ और डायफ़्रॉम की कार्यक्षमता बढ़ने के साथ साथ इस अंगों को स्वस्थ होने में मदद मिलती है।इसी लिए इस आसन का नियमित अभ्यास करने से ब्रोंकाइटिस को ठीक करने में सहायता मिलेगी।


इयोसनोफ़ीलिया(eosinophilia)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करने से इयोसनोफ़ीलिया संक्रामक जैसे रोग को ठीक करने में सहायता मिलती है।


वजन नियंत्रण में(weight loss)

पश्चिमोत्तानासन के अभ्यास से हमारे पेट(belly fat),कमर(Waist),नितम्ब(hips),पैर(legs)जाँघ(thigh)के आस पास के क्षेत्र की चर्बी कम होती है इसके साथ साथ हमारी मसल्स टोनप करने में भी यह आसन मदद करता है जो मसल्स ढीली हो जाती है उनको कसा हुआ(tight)बनाता है ,शरीर का मेटाबोलिज्म ठीक करता है जिससे शरीर के अतिरिक्त मेध को कम करने में मदद मिलती है।इसीलिए इस आसन को वजन नियंत्रण में भी महत्वपूर्ण माना जाता है।


गुर्दे में(kidney)

पश्चिमोत्तानासन के अभ्यास से हमारी गुर्दे की कार्य क्षमता बढ़ती है साथ ही साथ हमारे शरीर से विषाक्त तत्व निकालने में यह आसन मदद करता है जिससे किडनी को काम का बोझ(work lod) कम पढ़ता है,यह हमारे शरीर में अतिरिक्त वजन को नहीं बढ़ने देता,कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में सहायक है,रक्त का संचार ठीक से करता है,शरीर के सभी अंगों को दुरुस्त करता हे,पसीने के माध्यम से शरीर की गंदगी बाहर निकालने का काम करता है,पेट साफ रहता है इन सभी कारणों से हम कह सकते हैं की गुर्दे को मजबूत और स्वस्थ करने में इस आसन का महत्वपूर्ण योगदान है।


मूत्र जनन विकार(alleviate disorders of the uro genital system)

पश्चिमोत्तानासन के नियमित अभ्यास से देखा गया हे की मूत्र जननांग से संबंधित अनेक प्रकार की समस्याओं में लाभ मिलता है।मूत्र जनन अंगों को स्वस्थ रखने में और उनकी कार्य क्षमता बढ़ने में यह आसन सहायक माना गया है।


सायनस की समस्या में(sinus)

सायनस की समस्या से परेशान व्यक्ति के लिए भी यह आसन बडा ही उपयोगी साबित हुआ है क्योंकि यह हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है साथ ही साथ एलर्जी से होने वाले सभी रोगों में उपयोगी माना गया है तथा हमारे श्वसन तंत्र को मजबूत बनाता है जिससे सायनस,अस्थमा,खासी और जुकाम जैसी अनेक समस्याओं से बचाने और ठीक करने में मददगार माना गया है।


पश्चिमोत्तानासन की सावधानियाँ(Precautions for Paschimottanasana)

इस आसन का अभ्यास करते हुए हमें कुछ सावधानियाँ रखनी जरुरी है 

  • गर्भवती महिलाओं को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • यदि आपके हॅमिस्टिंग में खिचाव या चोट लगी हो तो इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • इस आसन का अभ्यास हमें अपनी शारीरिक क्षमता के अनुरूप ही करना चाहिए।
  • यदि कमर में चोट,स्लिप डिस्क,कमर दर्द है तो हमे इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • अस्थमा के रोगी को इस आसन को किसी योग्य चिकित्सक की देख रेख में ही करना चाहिये।
  • दस्त की समस्या में इस आसन के अभ्यास से बचना चाहिये।
  • यदि पेट में अल्सर है तो इस आसन को करें या किसी योग्य चिकित्सक के देख रेख में करें।
  • अधिक थकान के समय इस आसन का अभ्यास करें।
  • इस आसन का अभ्यास हमेशा खाली पेट करें।
  • इस असान का अभ्यास कभी भी झिटके से नहीं करना चाहिये।
  • यदि आपको किसी प्रकार की चिकित्सकीय समस्या रक्तचाप,हृदयरोग,पेट में सूजन,मांसपेशियों का फट जाने में चिकित्सक के परामर्श के बाद यह आसन किसी योग्य चिकित्सक के निगरानी में ही करना उचित होगा। 
  • कटिस्नायुशूल(sciatica) के अधिक दर्द में इस आसन का अभ्यास ही करें तो बेहतर होगा।
  • पेट में कोई भी ऑपरेशन हुआ है तो कुछ समय के लिये यह अभ्यास नहीं करना चाहिए इसके बाद जब सुरू करें तो पहले चिकित्सक से परामर्श ले इसके बाद योग्य चिकित्सक की देख रेख में अभ्यास करें।
  • इस आसन के अभ्यास से बचना चाहिए जो घुटनों और जोड़ों के दर्द से जूझ रहे हों।
  • इस आसन का अभ्यास तभीं करें जब ठीक से शरीर को वॉर्मअप सूक्ष्म व्यायाम कर ले जिससे शरीर इस आसन के अभ्यास के लिये तैयार हो सके।
  • यदि तीव्र सर्वाइकल का दर्द है या चक्कर रहे हो सर्वाइकल स्पांडलाइटिस के कारण तो इस आसन का अभ्यास ना करें।
  • यदि सिर का चक्कर(Vertigo)की समस्या है तो इस आसन के अभ्यास से बचना चाहिये।

पश्चिमोत्तानासन से हानि नुकसान(Paschimottanasan ke Nuksan)

पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास ठीक तरीके से किया जाये तो इसके कोई नुकसान नहीं है लेकिन कुछ परिस्थितियों में इस आसन से परहेज़ करना चाहिए,जैसे कि कमर दर्द,स्लिप डिस्क,सायटिका दर्द,पेट दर्द,बहुत अधिक घुटनों का दर्द,गर्भावस्था,कोई पेट का ऑपरेशन पैरो से जुड़ी समस्याओं में इस आसन का अभ्यास करने से बचना चाहिये।योगाभ्यास में कोई भी आसन को गलत तरीके से नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि हमने गलत विधि से आसन का अभ्यास किया, ठीक से नहीं किया तो हमें लाभ की जगह हानि हो सकती है, जब तक हमसे सही तरीके से,सही विधि से आसन करने का तरीका पता चल जाये या आसन अभ्यास में विशेषज्ञ बन जायें तब तक किसी सुयोग्य चिकित्सक की देख रेख में ही अभ्यास करें तो उचित होगा।




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